बिना बाइक चलाए झेलना पड़ रहा है EMI का बोझ : अपने नाम पर दूसरे के लिए बाइक खरीदना पड़ा महंगा, अब फाइनेंस कंपनी कर रही है 90 हजार की मांग
चित्तौड़गढ़,(डीपी न्यूज) । जिले के आकोला थाना क्षेत्र में रहने वाले शंभू लाल भील के साथ ठगी और धोखाधड़ी का एक मामला सामने आया है। यह घटना उन सभी लोगों के लिए चेतावनी है जो दूसरों के कहने पर अपने नाम से कर्ज या फाइनेंस करवाते हैं। शंभूलाल भील आज ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां वह बिना बाइक चलाए ही उसकी किस्तें चुकाने को मजबूर हो गया है।
28 वर्षीय शंभू लाल भील पुत्र नारायण भील, जो एक ट्रैक्टर ड्राइवर है, ने करीब एक साल पहले अपने सपनों की बाइक खरीदी थी। उसने 17 हजार रुपए डाउन पेमेंट देकर एक बाइक ली और अब तक ईमानदारी से उसकी 15 किस्तें दे चुका है। उसका सपना था कि मेहनत की कमाई से एक दिन पूरी बाइक अपनी बना लेगा।
शंभू लाल जिस ट्रैक्टर को चलाने का काम करता था, उसके मालिक संजय आचार्य को उसकी बाइक देखकर लालच आ गया। संजय ने भी वैसी ही बाइक लेने की इच्छा जताई, लेकिन उसके पास खुद के डॉक्यूमेंट्स थे फिर भी वह अपने नाम से फाइनेंस नहीं करवाना चाहता था। ऐसे में उसने शंभू लाल से बात की और कहा कि वह उसके नाम से एक बाइक खरीदना चाहता है।
संजय आचार्य के कहने पर शंभुलाल ने अपने डॉक्यूमेंट्स उसे दे दिए। संजय ने 15 हजार रुपए का डाउन पेमेंट देकर शंभू लाल के नाम से एक नई बाइक खरीद ली। इस बाइक की कुल 30 किस्तें चुकानी थी। संजय ने बाइक लेते समय एक स्टांप पेपर भी बनवाया था, जिसमें उसने शंभू लाल द्वारा किस्तें देना बताया। शंभू लाल ने भी उस डॉक्यूमेंट पर साइन कर दिया। संजय ने शंभू लाल को भरोसा दिलाया था कि किस्त वो खुद देगा। शुरुआत में संजय ने सिर्फ दो किस्तें भरी और फिर यह बाइक तीसरे व्यक्ति छगन जाट को बेच दी। एक साल होने को आया लेकिन अभी तक बाकी की किस्त नहीं भरी गई।
बड़ी बात यह है कि संजय आचार्य ने यह बाइक तो बेच दी लेकिन उससे मिले पैसे भी शंभू लाल को नहीं दिए। अब यह बाइक नारायण के पास नहीं है, लेकिन फाइनेंस कंपनी की नजर में वह ही इसका मालिक है। फाइनेंस कंपनी लगातार शंभू लाल से बाकी की करीब 90 हजार रुपए की रकम मांग रही है।
इस समय शंभू लाल अपनी खुद की बाइक की किस्तें तो चुका रहा है, लेकिन जो दूसरी बाइक संजय के लिए ली गई थी, उसकी रकम चुकाना उसके लिए नामुमकिन हो गया है। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वह दो-दो बाइकों की किस्तें दे सके, और वह भी ऐसी बाइक की, जिसे उसने कभी चलाई भी नहीं।
अब परेशान होकर शंभू लाल भील ने जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पेश होकर न्याय की गुहार लगाई है। उसने मांग की है कि उसकी पहचान का गलत इस्तेमाल कर जो बाइक ली गई, उसके लिए उसे जिम्मेदार न ठहराया जाए और दोषी संजय आचार्य के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ शंभू लाल के साथ ही हुआ है। जिले में इस तरह के मामले अब आम होते जा रहे हैं, जहां लोग अपने पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड या अन्य डॉक्यूमेंट्स दूसरों को दे देते हैं और बाद में उनका गलत इस्तेमाल कर कर्ज या फाइनेंस करवा लिया जाता है।
ऐसे मामलों में किसी को भी अपने डॉक्यूमेंट्स बिना कानूनी सहमति के नहीं देने चाहिए। खासकर फाइनेंस, लोन या बैंक से जुड़ी प्रक्रिया में बहुत सतर्क रहने की जरूरत होती है। एक बार किसी के नाम से लोन या फाइनेंस हो गया तो कानूनी रूप से वही व्यक्ति जिम्मेदार माना जाता है, चाहे उसने उस चीज का इस्तेमाल किया हो या नहीं।
शंभू लाल भील की कहानी दूसरों के लिए सीख है कि अच्छे संबंध और भरोसे के नाम पर भी डॉक्यूमेंट्स का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भी एक तरह की धोखाधड़ी है, जिसकी सजा कानून में तय है।
अब शंभू लाल को उम्मीद है कि पुलिस उसकी शिकायत पर उचित कार्रवाई करेगी और दोषी के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे। साथ ही फाइनेंस कंपनी को भी असली स्थिति समझाकर नारायण को राहत दी जाएगी।
