खेरवाडा : एसटीसी पास खुशबू सरपंच बनी,बीए फर्स्ट ईयर की प्रेमिला भी जीती, एक की पहले दादी तो दूसरे की मां सरपंच थी, दोनों सीटो पर निधन से हुआ उपचुनाव

खेरवाडा,डीपी न्यूज । उदयपुर जिले के खेरवाड़ा क्षेत्र में दो ग्राम पंचायतों में रविवार को उप चुनाव में सरपंच के चुनाव के बाद रात को मतगणना के बाद घोषित परिणाम में कातरवास में खुशबू डोडा तो ढीकवास में प्रेमिला कुमारी सरपंच बनी। दोनों कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद अब गांव के विकास की कमान संभालेगी।

उपखंड अधिकारी जवाहर लाल चौधरी ने बताया कि कातरवास पंचायत में 67.99 प्रतिशत व ढ़ीकवास में 70.17 प्रतिशत मतदान हुआ। कातरवास में मृतक सरपंच की पोती और ढ़ीकवास में पुत्री ने ही जीत हासिल की।

ढीकवास पंचायत में 2575 में से 1807 वोट पड़े जिसमें प्रेमिला कुमारी को 965 वोट, नानालाल को 745, रेखा देवी को 72 और 25 नोटा के नाम रहे।

बावलवाड़ा उप तहसीलदार अमृतलाल मेघवाल ने बताया कि कातरवास में खुशबू डोडा 416 मतों से विजयी रही। कातरवास में 2890 मतदाता में से ने 1960 मतदाताओं ने मतदान किया। जिसमें से खुशबू को 983 वोट, ललिता डोडियार को 567 तथा बशु देवी डोडा को 374 वोट मिले।

दादी की जगह ली खुशूब ने

कातरवास ग्राम पंचायत में अब खुशबू डोडा सरपंच बन गई। 23 साल की खुशबू कहती है कि उसने कभी सरपंच बनेगी यह नहीं सोचा लेकिन दादी के जाने के बाद जब उप चुनाव आए और घर वालों ने कहा तो चुनाव लड़ लिया। खुशबू ने जयपुर से एसटीसी कर ली है और अब वह एमजी कॉलेज से बीए प्रथम ईयर की प्राईवेट पढ़ाई कर रही है। पहले यहां सरपंच खुशबू की दादी कमला देवी थी लेकिन उनकी तबियत खराब थी और सितंबर 2023 में उनका निधन हो गया। उप चुनाव में खुशबू ने चुनाव जीतकर अब दादी की जगह सरपंच बनी है। दादी से पहले वाले टर्म में खुशबू के पिता अनिल डोडा सरपंच थे।

मां चाहती थी प्रेमिला सरपंच बने

ढीकवास पंचायत में सरपंच प्रेमिला कुमारी की पहले मां बशुदेवी सरपंच थी। मां बीमारी थी और बाद में उनका निधन हो गया और उप चुनाव में बेटी को चुनाव मैदान में उतारा और प्रेमिला विजयी रही। 24 साल की प्रेमिला उदयपुर में बीएन कॉलेज से बीए कर चुकी है। इसके बाद से वह गांव में रहकर राज्य सरकार की कुछ वेकेंसी निकली जिसकी तैयारी में लगी है। वह कहती है कि उनकी मां की इच्छा थी कि आगे जब भी महिला सीट आए तो प्रेमिला को चुनाव लड़ाना है लेकिन मां के निधन से उप चुनाव हुए और प्रेमिला को चुनाव लड़ा और वह सरपंच बन गई। प्रेमिला कहती है कि जब मां की इच्छा थी तब मैंने भी ठाना था कि मुझे सरपंच तो बनना ही है।

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