पूर्व सांसद महावीर भगोरा के बेटे ने किया सुसाइड,PHD होल्डर ने लाइब्रेरी में फंदा लगाकर की आत्महत्या

उदयपुर के पूर्व सांसद महावीर भगोरा के बेटे आशीष भगोरा (40) शनिवार सुबह कमरे में मृत मिले। अंबामाता थाना इलाके में उनकी लाइब्रेरी है। यहां वे लाइब्रेरी का संचालन करते थे। शनिवार सुबह लाइब्रेरी के छात्र यहां पहुंचे तो कमरे में फर्श पर आशीष का शव पड़ा था। छत के कुंदे से गमछे का टुकड़ा लटक रहा था। अंबामाता थाना इंचार्ज मुकेश सोनी ने बताया- पूर्व सांसद का आवास उदयपुर के मल्लातलाई स्थित एकलव्य कॉलोनी में है। आशीष ने लाइब्रेरी के कमरे में फंदा लगाया। पुलिस घटनास्थल पहुंची। मौके से साक्ष्य जुटाकर शव को एमडी हॉस्पिटल की मॉर्च्युरी में रखवाया। प्रारंभिक जानकारी में सामने आया कि आशीष ने गमछे से फंदा लगाकर सुसाइड किया।

जानकारी के अनुसार- आशीष अंबामाता थाना इलाके में जय अंबे डेयरी के ऊपर लाइब्रेरी संचालित करते थे। यह लाइब्रेरी 24 घंटे ओपन रहती है। यहां सुबह 7:15 बजे कुछ छात्र पढ़ने पहुंचे। छात्र बैठकर पढ़े लगे। कुछ स्टूडेंट ने आशीष को आवाज दी लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

 

छात्र कमरे में पहुंचे तो आशीष फर्श पर पड़े हुए थे। छत के कुंदे से गमछे का टुकड़ा लटका हुआ था। पुलिस का कहना है कि पोस्टमॉर्टम के बाद मौत के कारण साफ होंगे। आशीष ने आत्महत्या का कदम क्यों उठाया, इसकी अभी जांच की जा रही है। सूचना पर मौके पर उदयपुर शहर जिला भाजपा अध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ और भाजपा नेता प्रमोद सामर भी पहुंचे। जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ ने कहा- होनहार छात्र था, जनजाति क्षेत्र में कई रचनात्मक काम किया, उनके पिता ने इलाके में पार्टी को विराट स्वरूप दिया। आशीष पढ़ाई में अच्छा था। हम जांच करेंगे कि क्या हुआ है। पुलिस भी मामले की तह तक जाएगा। लेकिन यह बहुत दुख की बात है।

बता दें कि पूर्व सांसद महावीर भगोरा का 4 साल पहले कोरोना से निधन हो गया था। महावीर भगोरा बीजेपी से विधायक, मंत्री और सांसद रह चुके थे। 22 जुलाई 2008 में लोकसभा सत्र के दौरान संसद में एक करोड़ रुपए उड़ाए गए थे। इसमें बीजेपी सांसद महावीर भगोरा भी शामिल थे। जिसके बाद महावीर भगोरा को जेल भी जाना पड़ा था। राजनीति में आने से पहले महावीर भगोरा समाज कल्याण विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पद पर कार्यरत है।  उन्होंने राजकीय सेवा से इस्तीफा देने के बाद साल 1991 में सलूंबर से सांसद का चुनाव लड़ा था। लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद में 1993 में वह गोगुंदा से विधायक रहे और तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत की सरकार में राज्य मंत्री बने।

 

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